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मिरोव


मिरोव

सोचिये कि एक दिन आप नींद से जागते हैं और पाते हैं कि आप उस दुनिया में ही नहीं हैं जो आपने सोने से पहले छोड़ी थी तो आपको क्या महसूस होगा… सन दो हजार बत्तीस की एक दोपहर न्युयार्क के मैनहट्टन में एक सड़क के किनारे पड़ी बेंच पर जागे एडगर वैलेंस के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था।
वह जिस जगह को और जिस दुनिया को देख रहा था वह उसने पहले कभी नहीं देखी थी, जबकि वह अपने आईडी कार्ड के हिसाब से न्युयार्क में रहने वाला एक अमेरिकी था… उसे यह नहीं याद था कि वह अब कौन था लेकिन धीरे-धीरे उसे यह जरूर याद आता है कि वह तो भारत के एक गांव का रहने वाला था और वह भी उस वक्त का जब मुगलिया सल्तनत का दौर था और अकबर का बेटा जहांगीर तख्त नशीन था।

उसे न सामने दिखती चीजों से कोई जान पहचान थी और न ही खुद की योग्यताओं का पता था लेकिन फिर भी सबकुछ उसे ऐसा लगता था जैसे वह हर बात का आदी रहा हो जबकि उसके दौर में तो न यह आधुनिक कपड़े पहनने वाले लोग थे, न गाड़ियां और न उस तरह की इमारतें। उसने कभी तलवार भी न उठाई थी मगर उसका शरीर मार्शल आर्ट का एक्सपर्ट था।

उसके घर में जो लड़की खुद को उसकी बीवी बताती थी, उसे कभी उसने देखा ही नहीं था… उसके लिये एकाएक सबकुछ बदल गया था, उसका देश, उसकी जमीन, उसके लोग और यहां तक कि उसका अपना शरीर और जेंडर भी… फिर कुछ इत्तेफ़ाक़ों के जरिये वर्तमान जीवन का कुछ हिस्सा उसे याद आता भी है तो कई ऐसे लोग उसके पीछे पड़ जाते हैं जिनका दावा था कि उसने न सिर्फ उनके सिंडीकेट के एक मुखिया को खत्म किया था बल्कि उनके टेन बिलियन डॉलर भी पार किये थे… जबकि वह पूरी तरह श्योर था कि उसने कभी उन लोगों को देखा तक नहीं था।
इतना कम नहीं था कि उसे अपने बीते दौर का एक पेचीदा सवाल और उलझा देता है कि दुनिया भर से लूटा गया कुछ बेशकीमती जवाहरात और कलाकृतियों पर आधारित एक ऐसा खजाना भी उसकी जानकारी में कहीं दफन हुआ था जिसके पीछे न सिर्फ डच, फ्रांसीसी और ब्रिटिश सिपाही और जासूस पड़े थे बल्कि कुछ चीनियों के साथ भी उसी के पीछे उसकी सांठगांठ हुई थी लेकिन जिनके पीछे उसे मौत के मुंह में पहुंचना पड़ा था।

अब उस खजाने का जिक्र तक कहीं नहीं मिलता और न ही इतिहास में ऐसा कोई जिक्र मिलता है कि किसी के हाथ ऐसा कुछ लगा हो… हां— फ्रांस, ब्रिटेन के कुछ दस्तावेजों से इस बात का पता तो चलता है कि ऐसा कोई खजाना उस वक्त जिक्र में था लेकिन उन्होंने उसे बस अफवाह माना था। तो सवाल यह था कि अगर वह किसी के हाथ नहीं लगा तो उसे अभी भी वहीं होना चाहिये जहां उसे छोड़ा गया था… और इत्तेफाक से वह जगह उसे याद थी। उसे उस जगह का वो मालिक भी याद था जो खुद को उस तिलस्म का दरोगा कहता था जहां वह खज़ाना दफ़न था और खुद अपनी उम्र दो सौ साल की बताता था।

लेकिन उसका चार सौ साल बाद जागना और उस दौर की एक अफवाह को सच साबित करना उन सरकारों के भी कान खड़े कर देता है जो उस पर अपना दावा जताते थे और फिर एक लंबी जद्दोजहद शुरू हो जाती है उसे हासिल करने की… लेकिन जहां वह बेशकीमती खजाना मौजूद था, वहां तो अब किसी और की हुकूमत थी और हुकूमत भी ऐसी वैसी नहीं बल्कि ऐसे लोगों की जो खुद दुनिया भर में लूटमार ही करते फिरते थे। साथ ही कई ऐसे सवाल अब वजूद में आ गये थे जो तब उन लोगों की समझ में नहीं आये थे लेकिन अब की आधुनिक दुनिया को देख कर कहा जा सकता था कि वे चीजें और वह जगह उस दौर में होने ही नहीं चाहिये थे लेकिन थे और क्यों थे, इसका कोई भी जवाब वहां किसी के पास नहीं था।
आखिर यह कैसा इत्तेफाक था कि चार सौ साल पहले के उस दौर में, जब वैज्ञानिक तरक्की भी नहीं हुई थी— एक बेहद मुश्किल जगह, एक बेहद आधुनिक तर्ज का अंडरग्राउंड बंकर मौजूद था, जहां चार सौ साल बाद की आधुनिक चीजें उस दौर में मौजूद थीं। कौन था जो उस जगह को चला रहा था, सुरक्षित रखे था? सारंग ख़ुद को उस तिलस्म का दरोगा कहता था तो कोई तो होगा जो उस जगह का मालिक होगा— जिनसे सारंग खौफ खाता था… कौन थे वे?

यह एक ऐसी रोमांचक यात्रा है जो इस जानी-पहचानी दुनिया से शुरु होती है और एक ऐसी दुनिया तक जाती है जिसके बारे में हम कुछ नहीं जानते। हम रोज़ एक अंतहीन सा आकाश देखते हैं, इस पर टंके उजले सितारों को देखते हैं और सोचते हैं कि यह यूनिवर्स कितना विशाल है और इसकी तुलना में हम लगभग नगण्य। इस पृथ्वी समेत इस यूनिवर्स में जितने भी तारे, ग्रह, उपग्रह, या राॅ मटेरियल है, यह सब मैटर है— जिनमें ठोस, गैस और लिक्विड सब शामिल है लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह इतना सारा मटेरियल भी यूनिवर्स के साईज को देखते हुए बस चार-पांच प्रतिशत ही है।

तो बाकी चीज़ क्या है?

कोई अनडिटेक्टेबल मैटर, जिसे कुछ जगहों पर और कुछ तरीकों से हम बस महसूस कर सकते हैं। इसकी कोई स्पष्ट पहचान नहीं है, न ऐसी कोई प्रापर्टी कि जिसे हम अपने सेंसेज, यंत्रों या किसी तकनीक से सीधे डिटेक्ट कर सकें। पहचान के लिये हमने इसे नाम दिया है डार्क मैटर और डार्क एनर्जी का। असल में जो भी है— यह यूनिवर्स इसी पदार्थ और ऊर्जा का है और जो कुछ भी हमारे लिये विजिबल है, वह इसका एक छोटा सा हिस्सा भर है।
क्या हो कि किसी दिन हम पर यह राज़ फ्लैश हो कि असल यूनिवर्स तो वही है और हम जिसे यूनिवर्स समझते हैं, जिसका हम ख़ुद हिस्सा हैं— वह इस मुख्य यूनिवर्स में आई एनाॅमली भर है। हमसे एकदम अलग दुनिया और अलग निज़ाम उस मुख्य यूनिवर्स के रूप में हमारे साथ ही मौजूद है, जिसे हम अपने आसपास मौजूद होते हुए भी सिर्फ इसलिये महसूस ही नहीं कर पाते क्योंकि यह हमारे लिये एग्जिस्ट ही नहीं करता… और क्या हो कि हममें से कुछ लोगों को यह ताक़त हासिल हो जाये कि वे इसे फील करने लगें, देखने लगें और छूने लगें।

उपरोक्त कहानी "मिरोव" एक तीन चैप्टर में बंधी गाथा है, जिसका पहला चैप्टर आपको आज से दस साल बाद की और ज्यादा आधुनिक हो चुकी दुनिया के साथ चार सौ साल पीछे गुज़र चुके उस अतीत में ले जायेगा, जहां न सिर्फ इस पृथ्वी के भूत-भविष्य से जुड़े गहरे राज़ दफन हैं, बल्कि वहीं से एक अलग दुनिया के सफर की कुंजी भी मिलती है। दूसरा चैप्टर अलग-अलग टीमों में बंधे तमाम लोगों का बीहड़ में बसे उस पुरातन अड्डे के लिये किया गया एक रोमांचक सफर है, जहां उनकी मुलाकात न सिर्फ एक जाने-पहचाने चरित्र से होती है— बल्कि यह सफर उनमें से ज्यादातर के लिये जानलेवा ही साबित होता है। तीसरा चैप्टर उस डार्क यूनिवर्स की कल्पना को साकार करता है जो उन समय यात्रियों के ख्वाबों ख्यालों में भी नहीं थी… जहां उनके सामने जो भी मौजूद था, वह सब उनकी कल्पनाओं से भी परे था।

तो थोड़ा इत्मीनान और धैर्य के साथ पढ़िये—

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